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Kartik Maas Puja Vidhi: कार्तिक मास व्रत पूजा विधि के बारे में यहां जानें

कार्तिक मास को धार्मिक कार्यों के लिए सभी माह में सर्वश्रेष्ठ माना गया है आश्विन मास के शुक्ल पक्ष से कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष तक पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान करना श्रेष्ठ माना गया है जो भी लोग नदियों में स्नान नहीं कर पाते हैं, वह सुबह अपने घर में सूर्य उदय से पहले जगकर स्नान व पूजा पाठ करते हैं Kartik Maas Puja व व्रत करने से तीर्थयात्रा के बराबर शुभ फलों की प्राप्ति हो जाती है इस माह में अधिक से अधिक जप करना चाहिए कार्तिक मास में भोजन दिन में एक समय ही करना चाहिए जो भी व्यक्ति कार्तिक के पवित्र माह के सभी नियमों का पालन करते हैं, वह वर्ष भर के सभी पापों से मुक्ति हो जाते हैं।

कार्तिक मास व्रत पूजा विधि

कार्तिक मास में व्यक्ति को सुबह जल्दी जगकर स्नान करने के पश्चात राधा-कृष्ण, तुलसी, पीपल व आंवले का पुजन करना चाहिए ऐसा करने से सभी देवताओं की परिक्रमा करने के समान महत्व माना गया है सांयकाल में भगवान श्री विष्णु जी की पूजा तथा तुलसी की पूजा करनी चाहिए संध्या समय में दीपदान भी करना चाहिए कार्तिक मास में राधा-कृष्ण, श्री विष्णु भगवान तथा तुलसी पूजा करने का अत्यंत महत्व है जो मनुष्य इस माह में इनकी पूजा करता है, उसे सभी पुण्य फलों की प्राप्ति होती है।

कहा जाता है की कार्तिक मास में व्रत व् पूजा करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य फल मिलता है कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि पर व्यक्ति को बिना स्नान किए नहीं रहना चाहिए कार्तिक माह की षष्ठी तिथि को कार्तिकेय व्रत का अनुष्ठान किया जाता है स्वामी कार्तिकेय इसके देवता माने जाते है।

कार्तिक मास पूजा के लाभ

पद्म पुराण के अनुसार कार्तिक की एकादशी तथा पूर्णिमा तिथि का व्रत करने से व्यक्ति को पुण्य व लाभ मिलता है और सभी मनोकामना की पूर्ण होती है यही कारण था कि सत्यभामा को श्री कृष्ण पति रूप में प्राप्त हुए क्योंकि उन्होंने पूर्व जन्म में कार्तिक की एकादशी तथा पूर्णिमा को व्रत रखा था ऐसा एक आख्यान में कहा गया है।

कार्तिक मास पूजा का महत्व

स्कंद पुराण में कार्तिक महीने की महिमा बताते हुए कहा गया है की कार्तिक मास का महत्व और मास से ख़ास है इस महीने में व्रत व पूजा करना और महीने की तुलना में कल्याणकारी, श्रेष्ठ व उत्तम बताया है यह बात स्वयं नारायण ने ब्रह्मा से, ब्रह्मा ने नारद से तथा नारद ने महाराज पृथु से कही हैं।

शास्त्रों के अनुसार जो भी व्यक्ति संकल्प लेकर पूरे कार्तिक मास में किसी जलाशय में जाकर सूर्योदय से पहले स्नान करके साफ़ कपडे धारण करने के बाद जलाशय के निकट दीपदान करते हैं, उन्हें विष्णु लोक की प्राप्ति होती हैं मान लीजिये की किसी कारणवश से कार्तिक स्नान का व्रत बीच में ही टूट जाता है, अथवा प्रातः उठकर प्रतिदिन स्नान करना संभव नहीं हो तो ऐसी स्थिति में कार्तिक स्नान का पूर्ण फल दिलाने वाला त्रिकार्तिक व्रत है।

त्रिकार्तिक मास पूजा विधि

त्रिकार्तिक व्रत कार्तिक पूर्णिमा से तीन दिन पहले शुरू होता है त्रिकार्तिक व्रत रखने वाले को कार्तिक शुक्ल त्रियोदशी, चतुर्दशी और पूर्णिमा तिथि के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करना चाहिए भगवान श्री विष्णु जी को प्रसन्नता के लिए व्यक्ति को त्रियोदशी तिथि से पूर्णिमा तक जितना संभव हो सके गीता, विष्णुसहस्रनाम एवं गजेन्द्रमोक्ष का पाठ करना चाहिए अगर ये भी नही कर सकते भगवान नाम का जप करना चाहिए।

त्रिकार्तिक व्रत के विषय में शास्त्र कहता है कि त्रयोदशी के दिन व्रत का पालन करने से समस्त वेद प्राणी को पवित्र करते हैं चतुर्दशी के व्रत से यज्ञ और देवता प्राणी को पावन बनाते हैं और पूर्णिमा के व्रत से भगवान श्री विष्णु जी द्वारा पवित्र जल प्राणी को शु्द्ध करते हैं इस प्रकार अंदर और बाहर से शुद्ध हुआ प्राणी भगवान विष्णु के लोक में शरण पाने योग्य बन जाता है जो भी व्यक्ति कार्तिक मास के पवित्र माह के नियमों का पालन करते हैं, वह वर्ष भर के सभी पापों से मुक्ति पाते हैं इस माह में तुलसी में दीपक जलना चाहिए।

कार्तिक मास पूजा उद्यापन विधि

कार्तिक मास में की पूजा व् व्रत करने से तीर्थयात्रा के बराबर शुभ फलों की प्राप्ति व् पुण्य की प्राप्ति के लिए व्यक्ति को लगातार 12 वर्ष तक कार्तिक मास में प्रात: स्नान व व्रत पूजा करने के साथ दान आदि करने के बाद 13वें वर्ष में पुरे विधि विधान से उद्यापन कर सकते हैं Kartik Maas Puja उद्यापन की विधि कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि से शुरू करते हैं सबसे पहले तुलसी के पोधे के मंडप को सुन्दर तरीके से सजा लें जिसमें चार दरवाजे होने चाहिए मंडप पर कलश की स्थापना करके कलश पर श्रीफल रखे।

कलश के पास में श्री लक्ष्मी नारायण भगवान की फ़ोटो रखकर पूजन करें पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्री हरी कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को शयन से उठे और त्रयोदशी तिथि वाले दिन सभी देवताओं ने उनके दर्शन किये और चतुर्दशी तिथि वाले दिन सभी देवतागन ने श्री हरी का पूजन किया इसलिए उद्यापन करते समय चतुर्दशी तिथि को ही श्री लक्ष्मी नारायण भगवान की पूजा करनी चाहिए व्यक्ति को चतुर्दशी तिथि की रात्रि में भजन – कीर्तन के साथ जागरण करना चाहिए क्युकी रात्रि जागरण का अति महत्व माना जाता हैं यह व्रत कृष्ण की पत्नी सत्यभामा ने भी किया था।

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