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श्री हनुमान अष्टकम || Shri Hanuman Ashtakam
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श्री हनुमान अष्टकम || Shri Hanuman Ashtakam
॥ श्रीहनुमदष्टकं ॥
हनुमदष्टकं अच्युतयतिकृतं
श्रीरघुराजपदाब्जनिकेतन पङ्कजलोचन मङ्गलराशे,
चण्डमहाभुजदण्डसुरारिविखण्डनपण्डित पाहि दयालो ।
पातकिनं च समुद्धर मां महतां हि सतामपि मानमुदारं,
त्वां भजतो मम देहि दयाघन हे हनुमन् स्वपदाम्बुजदास्यम् ॥ १॥
संसृतितापमहानलदग्धतनूरुहमर्मतनोरतिवेलं,
पुत्रधनस्वजनात्मगृहादिषु सक्तमतेरतिकिल्बिषमूर्तेः ।
केनचिदप्यमलेन पुराकृतपुण्यसुपुञ्जलवेन विभो वै,
त्वां भजतो मम देहि दयाघन हे हनुमन् स्वपदाम्बुजदास्यम् ॥ २॥
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संसृतिकूपमनल्पमघोरनिदाघनिदानमजस्रमशेषं,
प्राप्य सुदुःखसहस्रभुजङ्गविषैकसमाकुलसर्वतनोर्मे ।
घोरमहाकृपणापदमेव गतस्य हरे पतितस्य भवाब्धौ,
त्वां भजतो मम देहि दयाघन हे हनुमन् स्वपदाम्बुजदास्यम् ॥ ३॥
संसृतिसिन्धुविशालकरालमहाबलकालझषग्रसनार्तं,
व्यग्रसमग्रधियं कृपणं च महामदनक्रसुचक्रहृतासुम् ।
कालमहारसनोर्मिनिपीडितमुद्धर दीनमनन्यगतिं मां,
त्वां भजतो मम देहि दयाघन हे हनुमन्स्वपदाम्बुजदास्यम् ॥ ४॥
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संसृतिघोरमहागहने चरतो मणिरञ्जितपुण्यसुमूर्तेः,
मन्मथभीकरघोरमहोग्रमृगप्रवरार्दितगात्रसुसन्धेः ।
मत्सरतापविशेषनिपीडितबाह्यमतेश्च कथञ्चिदमेयं,
त्वां भजतो मम देहि दयाघन हे हनुमन्स्वपदाम्बुजदास्यम् ॥ ५॥
संसृतिवृक्षमनेकशताघनिदानमनन्तविकर्मसुशाखं,
दुःखफलं करणादिपलाशमनङ्गसुपुष्पमचिन्त्यसुमूलम् ।
तं ह्यधिरुह्य हरे पतितं शरणागतमेव विमोचय मूढं,
त्वां भजतो मम देहि दयाघन हे हनुमन्स्वपदाम्बुजदास्यम् ॥ ६॥
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संसृतिपन्नगवक्त्रभयङ्करदंष्ट्रमहाविषदग्धशरीरं,
प्राणविनिर्गमभीतिसमाकुलमन्दमनाथमतीव विषण्णम् ।
मोहमहाकुहरे पतितं दययोद्धर मामजितेन्द्रियकामं,
त्वां भजतो मम देहि दयाघन हे हनुमन् स्वपदाम्बुजदास्यम् ॥ ७॥
इन्द्रियनामकचौरगणैर्हृततत्त्वविवेकमहाधनराशिं,
संसृतिजालनिपातितमेव महाबलिभिश्च विखण्डितकायम् ।
त्वत्पदपद्ममनुत्तममाश्रितमाशु कपीश्वर पाहि कृपालो,
त्वां भजतो मम देहि दयाघन हे हनुमन्स्वपदाम्बुजदास्यम् ॥ ८॥
ब्रह्ममरुद्गणरुद्रमहेन्द्रकिरीटसुकोटिलसत्पदपीठं,
दाशरथिं जपति क्षितिमण्डल एष निधाय सदैव हृदब्जे ।
तस्य हनूमत एव शिवङ्करमष्टकमेतदनिष्टहरं वै,
यः सततं हि पठेत्स नरो लभतेऽच्युतरामपदाब्जनिवासम् ॥ ९॥
इति अच्युतयतिकृतं हनुमदष्टकं सम्पूर्णम् ।
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