त्रिपुर भैरवी स्तोत्रम् || Tripura Bhairavi Stotram || Tripura Bhairavi Stotra

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त्रिपुर भैरवी स्तोत्र || Tripura Bhairavi Stotram || Tripura Bhairavi Stotra

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त्रिपुर भैरवी स्तोत्र || Tripura Bhairavi Stotram || Tripura Bhairavi Stotra

श्री भैरव उवाच-

ब्रह्मादयस्स्तुति शतैरपि सूक्ष्मरूपं जानन्तिनैव जगदादिमनादिमूर्तिम् ।

तस्मादमूं कुचनतां नवकुङ्कुमास्यां स्थूलां स्तुवे सकलवाङ्मयमातृभूताम् ॥ १ ॥

सद्यस्समुद्यत सहस्र दिवाकराभां विद्याक्षसूत्रवरदाभयचिह्नहस्तां ।

नेत्रोत्पलैस्त्रिभिरलङ्कृतवक्त्रपद्मां त्वां तारहाररुचिरां त्रिपुरां भजामः ॥ २ ॥

सिन्दूरपूररुचिरां कुचभारनम्रां जन्मान्तरेषु कृतपुण्य फलैकगम्यां ।

अन्योन्य भेदकलहाकुलमानभेदै–र्जानन्तिकिञ्जडधिय स्तवरूपमन्ये ॥ ३ ॥

स्थूलां वदन्ति मुनयः श्रुतयो गृणन्ति सूक्ष्मां वदन्ति वचसामधिवासमन्ये ।

त्वांमूलमाहुरपरे जगताम्भवानि मन्यामहे वयमपारकृपाम्बुराशिम् ॥ ४ ॥

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चन्द्रावतंस कलितां शरदिन्दुशुभ्रां पञ्चाशदक्षरमयीं हृदिभावयन्ती ।

त्वां पुस्तकञ्जपपटीममृताढ्य कुम्भां व्याख्याञ्च हस्तकमलैर्दधतीं त्रिनेत्राम् ॥ ५ ॥

शम्भुस्त्वमद्रितनया कलितार्धभागो विष्णुस्त्वमम्ब कमलापरिणद्धदेहः ।

पद्मोद्भवस्त्वमसि वागधिवासभूमि-रेषां क्रियाश्च जगति त्रिपुरेत्वमेव ॥ ६ ॥

आश्रित्यवाग्भव भवाम्श्चतुरः परादीन्-भावान्पदात्तु विहितान्समुदारयन्तीं ।

कालादिभिश्च करणैः परदेवतां त्वां संविन्मयींहृदिकदापि नविस्मरामि ॥ ७ ॥

आकुञ्च्य वायुमभिजित्यच वैरिषट्कं आलोक्यनिश्चलधिया निजनासिकाग्रां ।

ध्यायन्ति मूर्ध्नि कलितेन्दुकलावतंसं त्वद्रूपमम्ब कृतिनस्तरुणार्कमित्रम् ॥ ८ ॥

त्वं प्राप्यमन्मथरिपोर्वपुरर्धभागं सृष्टिङ्करोषि जगतामिति वेदवादः ।

सत्यन्तदद्रितनये जगदेकमातः नोचेद शेषजगतः स्थितिरेवनस्यात् ॥ ९ ॥

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पूजांविधायकुसुमैः सुरपादपानां पीठेतवाम्ब कनकाचल कन्दरेषु ।

गायन्तिसिद्धवनितास्सहकिन्नरीभि-रास्वादितामृतरसारुणपद्मनेत्राः ॥ १० ॥

विद्युद्विलास वपुषः श्रियमावहन्तीं यान्तीमुमांस्वभवनाच्छिवराजधानीं ।

सौन्दर्यमार्गकमलानिचका सयन्तीं देवीम्भजेत परमामृत सिक्तगात्राम् ॥ ११ ॥

आनन्दजन्मभवनं भवनं श्रुतीनां चैतन्यमात्र तनुमम्बतवाश्रयामि ।

ब्रह्मेशविष्णुभिरुपासितपादपद्मं सौभाग्यजन्मवसतिं त्रिपुरेयथावत् ॥ १२ ॥

सर्वार्थभाविभुवनं सृजतीन्दुरूपा यातद्बिभर्ति पुनरर्क तनुस्स्वशक्त्या ।

ब्रह्मात्मिकाहरतितं सकलम्युगान्ते तां शारदां मनसि जातु न विस्मरामि ॥ १३ ॥

नारायणीति नरकार्णवतारिणीति गौरीति खेदशमनीति सरस्वतीति ।

ज्ञानप्रदेति नयनत्रयभूषितेति त्वामद्रिराजतनये विबुधा पदन्ति ॥ १४ ॥

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येस्तुवन्तिजगन्मातः श्लोकैर्द्वादशभिःक्रमात् ।

त्वामनु पाप्र्यवाक्सिद्धिं प्राप्नुयुस्ते पराम्श्रियम् ॥ १५ ॥

इतिते कथितं देवि पञ्चाङ्गं भैरवीमयं ।

गुह्याद्गोप्यतमङ्गोप्यं गोपनीयं स्वयोनिवत् ॥ १६ ॥

इति श्रीरुद्रयामले उमामहेश्वर संवादे पञ्चाङ्गखण्ड निरूपणे श्रीभैरवीस्तोत्रम् ।

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