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साधना कैसे करें || Sadhana Kaise Kare || Sadhana Karne Ki Vidhi || Sadhana Puja Vidhi

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साधना कैसे करें || Sadhana Kaise Kare || Sadhana Karne Ki Vidhi

किसी भी साधना की शुरुआत में जो मुख्य रूप से साधना की प्रारंभिक पूजन किया जाता हैं उसके बारे में हम यंहा जानकारी देने जा रहे हैं, ताकि आपके द्वारा की जाने साधना पूर्ण और किसी भी दोष से मुक्त हो जाए। बताई जा रही यह मूल प्रक्रिया मंत्र, दक्षिणा तंत्र, पुराण और वैदिक साधनाओं के लिए पूर्ण फल देती है। साधना करने से पहले साधना स्नान करें, निर्दिष्ट रंगीन कपड़े पहनें, विशिष्ट रंगीन आसन का उपयोग करें, दिए गए दिशा में बैठें और कलश, पञ्चपात्र, चम्मच, दीपक, भोजन अर्पण, फूल, बेल पत्र, तुलसी पत्र, दुर्वासा आदि जैसे सभी आवश्यक पूजा लेखों की व्यवस्था करें। धुपबत्ती, चंदन, रोली, सिंदूर, अक्षत जल आदि आपके सामने रख दें, ताकि आपको बीच में उठना न पड़े। Online Specialist Astrologer Acharya Pandit Lalit Trivedi द्वारा बताये जा रहे साधना कैसे करें || Sadhana Kaise Kare || Sadhana Karne Ki Vidhi को पढ़कर आप भी बहुत आसन तरीक़े से साधना की शुरुवात पूजन विधि कर सकेंगे !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! जय श्री मेरे पूज्यनीय माता – पिता जी !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें Mobile & Whats app Number : 9667189678 Sadhana Kaise Kare By Online Specialist Astrologer Sri Hanuman Bhakt Acharya Pandit Lalit Trivedi.

साधना कैसे करें || Sadhana Kaise Kare || Sadhana Karne Ki Vidhi

 

साधना कैसे करें || Sadhana Kaise Kare || Sadhana Karne Ki Vidhi || Sadhana Puja Vidhi

 

(i) पवित्रीकरण: पहले बाएं हाथ में जल लेकर उसे दाहिने हाथ से ढक लें एवं नीचे दिए गए मन्त्रोच्चारण के साथ जल को सिर तथा शरीर पर छिड़क लें। पवित्रता की भावना मन में करें।

पवित्रीकरण Sadhana मंत्र :

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपिवा ।।

यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्यभ्यन्तरः शुचिः ॥

ॐ पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु ।।

(ii) आचमन : तीन बार वाणी, मन व अंतः करण की शुद्धि के लिए एक चम्मच से जल का आचमन करें। नीचे बताये गए हर मंत्र के साथ एक आचमन किया जाये ।।

आचमन Sadhana मंत्र :

ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा ॥ १॥

ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा ॥ २॥

ॐ सत्यं यशः श्रीर्मयि श्रीः श्रयतां स्वाहा ॥ ३॥

(iii) शिखा स्पर्श एवं वंदन: शिखा के स्थान को स्पर्श करते हुए मन में भावना करें कि गायत्री के इस प्रतीक के माध्यम से सदा सद्विचार ही यहाँ स्थापित रहेंगे। फिर नीचे निम्न मंत्र का उच्चारण करें।

शिखा स्पर्श एवं वंदन Sadhana मंत्र :

ॐ चिद्रूपिणी महामाये दिव्यतेजः समन्विते ।।

तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजोवृद्धिं कुरूष्व मे ॥

(iv) प्राणायामः : श्वास को धीमी गति से गहरी खींचकर रोकना व बाहर निकालना प्राणायाम कृत्य में आता है। श्वास खींचने के साथ भावना करें कि प्राण शक्ति और श्रेष्ठता श्वास के द्वारा अंदर खींची जा रही है। छोड़ते समय यह भावना करें कि हमारे दुर्गुण दुष्प्रवृत्तियाँ, बुरे विचार प्रश्वास के साथ बाहर निकल रहे हैं। प्राणायाम नीचे दिए गए निम्न मंत्र के उच्चारण के बाद किया जाना चाहिए ।

प्राणायामः Sadhana मंत्र :

ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम् ।।

ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।।

ॐ आपोज्योतीरसोऽमृतं ब्रह्मभूर्भुवः स्वः ॐ ।।

(v) न्यास: इसका प्रयोजन है शरीर के सभी महत्त्वपूर्ण अंगों में पवित्रता का समावेश तथा अंतः की चेतना को जगाना ताकि देवपूजन जैसा श्रेष्ठ कृत्य किया जा सके। बायें हाथ की हथेली में जल लेकर दाहिने हाथ की पाँचों उँगलियों को उनमें भिगोकर बताए गए स्थान को मंत्रोच्चार के साथ स्पर्श करें ।।

न्यास Sadhana मंत्र :

ॐ वाङ्मे आस्येऽस्तु ।। (मुख को)

ॐ नसोर्मेप्राणोऽस्तु ।। ( नासिका के दोनों छिद्रों को )

ॐ अक्ष्णोर्मेचक्षुरस्तु ।। (दोनों नेत्रों को)

ॐ कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु ।। (दोनों कानों को)

ॐ बाह्वोर्मे बलमस्तु ।। (दोनों बाहों को)

ॐ ऊर्वोर्मेओजोऽस्तु ।। (दोनों जंघाओं को)

ॐ अरिष्टानिमेऽअङ्गानि तनूस्तान्वा में सह सन्तु ।। (समस्त शरीर को)

(vi) पृथ्वी पूजनम्:

दाहिने हाथ में अक्षत (चावल), पुष्प, जल लें, बायाँ हाथ नीचे लगाएँ, मन्त्र बोलें और पूजा वस्तुओं को पात्र में छोड़ दें ।। धरती माँ को हाथ से स्पर्श करके नमस्कार करें ।।

पृथ्वी पूजनम् Sadhana मंत्र :

ॐ पृथ्वि ! त्वया धृता लोका, देवि ! त्वं विष्णुना धृता ।। त्वं च धारय मां देवि ! पवित्रं कुरु चासनम ॥ 

(vii) दिग्बन्धन या भूतोत्सारन विधि:

आत्म रक्षार्थ तथा यज्ञ रक्षार्थ निम्न मन्त्र से जल, सरसों या पीले चावलों को(अपने चारों ओर) छोड़ें –

दिग्बन्धन या भूतोत्सारन विधि Sadhana मंत्र :

ॐ पूर्वे रक्षतु वाराहः आग्नेयां गरुड़ध्वजः ।

दक्षिणे पदमनाभस्तु नैऋत्यां मधुसूदनः ॥

पश्चिमे चैव गोविन्दो वायव्यां तु जनार्दनः ।

उत्तरे श्री पति रक्षे देशान्यां हि महेश्वरः ॥

ऊर्ध्व रक्षतु धातावो ह्यधोऽनन्तश्च रक्षतु ।

अनुक्तमपि यम् स्थानं रक्षतु ॥

अनुक्तमपियत् स्थानं रक्षत्वीशो ममाद्रिधृक् ।

अपसर्पन्तु ये भूताः ये भूताः भुवि संस्थिताः ॥

ये भूताः विघ्नकर्तारस्ते गच्छन्तु शिवाज्ञया ।

अपक्रमंतु भूतानि पिशाचाः सर्वतोदिशम् ।

सर्वेषाम् विरोधेन यज्ञकर्म समारम्भे ॥

(viii) तिलक सिन्दुर​: शिव साधाना मे भस्म का त्रिपुण्ड्र​, शक्ति साधना और भैरव साधना मे सिन्दुर​, गणेश और हनुमान साधन मे रक्तचन्दन , समस्त विष्णु अवतारों की पुजा मे पित चन्दन का तिलक करना चाहिये।

तिलक सिन्दुर Sadhana मंत्र :

भस्म धारण​ मंत्र:

॥ ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥ॐ त्र्यायुषं जमदग्ने: ( ललाटे ) ॐ कश्यपस्य त्र्यायुषं ( ग्रीवायां ) |ॐ जद्देवेषु ( बाहुमूले ) ॐ तन्नो अस्तु त्र्यायुषम् ( इति हृदि ) ||

रक्तचन्दन और पित चन्दन तिलक धारण मंत्र:

॥ ॐ नमो स्तवन अनंताय सहस्त्र मूर्तये, सहस्त्रपादाक्षि शिरोरु बाहवे। सहस्त्र नाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्त्रकोटि युग धारिणे नम:॥

सिन्दुर सिन्दुर मंत्र:

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके । शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

और मंत्र का उच्चारण करते तिलक करें। 

अब आप नीचे दिए मंत्र का उच्चारण करके दीपक को प्रज्वलित करते हुए नीचे दिए गए मंत्र का उच्चारण करें और धूपबत्ती जलाये। 

दीपक प्रज्वलित करने का Sadhana मंत्र :

दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दन:। दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते।।

(x) संकल्प : (दाहिने हाथ में जल व अक्षत और द्रव्य लेकर निम्न संकल्प मंत्र बोले

संकल्प Sadhana मंत्र :

‘ऊँ विष्णु र्विष्णुर्विष्णु : श्रीमद् भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेत वाराह कल्पै वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे कलि प्रथमचरणे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारत वर्षे भरत खंडे आर्यावर्तान्तर्गतैकदेशे —*— नगरे —**— ग्रामे वा बौद्धावतारे —— नाम संवत्सरे श्री सूर्ये —-यणे —- ऋतौ महामाँगल्यप्रद मासोत्तमे शुभ ——मासे —- पक्षे —- तिथौ —वासरे — नक्षत्रे शुभ योगे शुभ करणे शुभ राशि स्थिते चन्द्रे शुभ राशि स्थिते सूर्य शुभ राशि स्थिते देवगुरौ शेषेषु ग्रहेषु च यथा यथा राशि स्थान स्थितेषु सत्सु एवं ग्रह गुणगण विशेषण विशिष्टायाँ —–शुभ पुण्य तिथौ —- गौत्रः — ऽहं मम आत्मनः ——–देवता प्रीत्यर्थम्‌ मन्त्र जप ,हवन ,पुजा ,साधना करिष्ये।”इसके पश्चात्‌ हाथ का जल किसी पात्र में छोड़ देवें।

जहां जहां —- है वहा वहा वर्तमान स्थिति के दिन​, सम्व्त्सर​, मास​, अयण​, ऋतु, नक्षत्र, गोत्र​, नाम इत्यादि बोले ।

(xi) गुरु पुजन​ :

गुरु आवाहन​ Sadhana मंत्र :

ॐ स्वरुपनिरूपण हेतवे श्री गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि नमः |

ॐ स्वच्छ प्रकाश विमर्श हेतवे श्री परम गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि नमः |

ॐ स्वात्माराम पिंजर विलीन तेजसे श्री पारमेष्ठि गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि नमः |

गुरु ध्यान​ :

ब्रह्मानंदं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम् ।द्वंद्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम् ।एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षीभूतम् ।

भवातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि ॥

ॐ गुं गुरुभ्यो नमः।गन्धं समर्पयामी|—– चन्दन्, सिन्दुर्, रोलि लगाये|

ॐ गुं गुरुभ्यो नमः।अक्षताम् समर्पयामी|—-चावल​ चढाये|

ॐ गुं गुरुभ्यो नमः।पुष्पम्​ समर्पयामी|—-फ़ुल, चढाये|

ॐ गुं गुरुभ्यो नमः।धुपम्​ समर्पयामी|—-धुप​ दिखाये|

ॐ गुं गुरुभ्यो नमः।दिपं समर्पयामी|—-दिप दिखाये|

ॐ गुं गुरुभ्यो नमः।नैवेद्यं समर्पयामी|—-नैवेद्य​ (केले) दिखाये|

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।

गुरुरेव परंब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥

ध्यान मूलं गुरु मूर्ति पूजा मूलं गुरु पद्म ।

मंत्र मूलं गुरु वाक्यं मोक्ष मूलं गुरु कृपा ।।

ब्रह्मानंदं परमसुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिम् ।

द्वंद्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्ष्यम् ।

एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षीभूतम् ।

भवातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि ॥

अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् ।

तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥

स्थावरं जंगमं व्याप्तं यत्किंचित्सचराचरम् ।

तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥

मन्नाथः श्रीजगन्नाथो मद्गुरुस्त्रिजगद्गुरुः ।

ममात्मा सर्वभूतात्मा तस्मै श्रीगुरवे नमः ।।

न गुरोरधिकं तत्त्वं न गुरोरधिकं तपः ।

तत्त्वज्ञानात्परं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥

त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥

ॐ भद्रड् कर्णेभि: शृणुयाम देवा: । भद्रम् पश्येमाक्षभिर्यजत्रा: । स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभि: व्यशेम देवहितं यदायु: ।। ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृध्दश्रवा: । स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा: । स्वस्ति नस्तार्क्ष्योऽअरिष्टनेमि: स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ।। ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ।।

ॐ गुं गुरुभ्यो नमः। नमस्कारम् समर्पयामी|—-नमस्कार करे|

(xii) गणेश पुजन​:

गणेश आवाहन​ Sadhana मंत्र :

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय,

लम्बोदराय सकलाय जगत्‌ हिताय ।

नागाननाय श्रुतियज्ञभूषिताय,

गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः गणपते !

इहागच्छ इहातिष्ठ सुप्रतिष्ठो भव

मम पूजा गृहाण !

गणेशध्यान​ :

ॐगणानान्त्वा गणपति (गुँ) हवामहे

प्रियाणान्त्वा प्रियपति (गुँ) हवामहे

निधिनान्त्वा निधिपति (गुँ) हवामहे

वसो मम ।आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम्‌ ॥

ॐ श्री गणेशाय नमः गन्धं समर्पयामी|—– चन्दन्, सिन्दुर्, रोलि लगाये|

ॐ श्री गणेशाय नमः अक्षताम् समर्पयामी|—-चावल​ चढाये|

ॐ श्री गणेशाय नमः पुष्पम्​ समर्पयामी|—-फ़ुल, दुर्वा​ चढाये|

ॐ श्री गणेशाय नमः धुपम्​ समर्पयामी|—-धुप​ दिखाये|

ॐ श्री गणेशाय नमः दिपं समर्पयामी|—-दिप दिखाये|

ॐ श्री गणेशाय नमः नैवेद्यं समर्पयामी|—-नैवेद्य​ (गुड​) दिखाये|

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ ।

निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥

ॐ श्री गणेशाय नमः नमस्कारम् समर्पयामी|—-नमस्कार करे|

(xiii) भैरव​ पुजन​:

भैरव​ आवाहन​ Sadhana मंत्र :

ॐ भ्रं भैरवाय नमः।आवाहयामि स्थापयामि पुजयामि नमः।

भैरव​ ध्यानः

कर-कलित-कपालः कुण्डली दण्डपाणिस्तरुण-तिमिर-वर्णो व्याल-यज्ञोपवीती । ऋतु-समय-सपर्या-विघ्न-विच्छित्ति-हेतुर्जयति बटुकनाथः सिद्धिदः साधकानाम् ।।

ॐ भ्रं भैरवाय नमः।गन्धं समर्पयामी|—– चन्दन्, सिन्दुर्, रोलि लगाये|

ॐ भ्रं भैरवाय नमः।अक्षताम् समर्पयामी|—-चावल​ चढाये|

ॐ भ्रं भैरवाय नमः।पुष्पम्​ समर्पयामी|—-फ़ुल, दुर्वा​ चढाये|

ॐ भ्रं भैरवाय नमः।धुपम्​ समर्पयामी|—-धुप​ दिखाये|

ॐ भ्रं भैरवाय नमः।दिपं समर्पयामी|—-दिप दिखाये|

ॐ भ्रं भैरवाय नमः।नैवेद्यं समर्पयामी|—-नैवेद्य​ (गुड​) दिखाये|

ॐ तीक्ष्णदंष्ट्र महाकाय कल्पान्त दहनोपमम| भैरवाय​नमस्तुभ्यम्मनुद्न्याम दातु मर्हिसि||

ॐ भ्रं भैरवाय नमः। नमस्कारम् समर्पयामी|—-नमस्कार करे|

(xiv) कलश, घण्टा, मण्ड्प पुजा:

कलश पुजा Sadhana मंत्र :

कला कला हि देवानां दानवानां कला कला: ।

संगृह्य निर्मितो यस्मात्कलशस्तेन कथ्यते ॥

कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रः समाश्रितः ।

मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः ॥

कुक्षौ तु सागराः सप्त सप्तद्वीपा च मेदिनी ।

अर्जुनी गोमती चैव चन्द्रभागा सरस्वती ॥

कावेरी कृष्णः वेणा च गङ्गा चैव महानदी ।

तापी गोदावरी चैव माहेन्द्री नर्मदा तथा ॥

नदाश्च विविधा जाता नद्यः सर्वास्तथापराः ।

पृथिव्यां यानि तीर्थानि कलशस्थानि तानि वै ॥

सर्वे समुद्राः सरितस्तीर्थानि जलदा नदाः ।

आयान्तु मम शान्त्यर्थं दुरितक्षयकारकाः ॥

ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः सामवेदो ह्यथर्वणः ।

अङ्गैश्च सहिताः सर्वे कलशाम्बुं समाश्रिताः ॥

अत्र गायत्री सवित्री शान्तिः पुष्टिकरी तथा ।

आयान्तु देवपूजार्थं दुरितक्षयकारकाः ॥

मन्त्र बोलके कलश मे गन्ध​, अक्षता, पुष्प डाले | प्रणाम करे और धेनु मुद्रा प्रदर्शित करे।

घण्टा पुजा Sadhana मंत्र :

घंटा को चन्दन और पुष्प आदि से अलंकृत कर निम्न लिखित मंत्र पढ़ कर प्रार्थना करे –

आगमार्थम तू देवानां गमनार्थं तू रक्षसाम |

कुरु घंटे वरम नादं देवता स्थान संनिधौ ||

प्रार्थना के बाद घंटा को बजाये और यथा स्थान रख दें | इस नाम मंत्र से घंटे में स्थित गरुड़देव का पूजन करें |

मंत्र-

घंटास्थिताय गरुडाय नमः सर्वोपचारार्थे

गंधाक्षत समर्पयामि | पूजयामि | नमस्करोमि |

शंख पूजन Sadhana मंत्र :

शंख में दो दर्भ या दूब, तुलसी और फुल डालकर ||ॐ || कहकर उसे सुवासित जलसे भरदें | तथा इस जल को गायत्री-मंत्र से अभिमंत्रित करदें | फिर निम्नलिखित मंत्र पढ़कर शंख में तीर्थों का आवाहन करें –

पृथिव्याम यानि तीर्थानि स्थावराणि चराणि च |

तानि तीर्थानि शंखेस्मिन विशन्तु ब्रह्म शासनात ||

इसके बाद शंखाय नमः,’ चन्दनम समर्पयामि ‘ कहकर चन्दन लगाएं और ‘ शंखाय नमः ,

पुष्पं समर्पयामि ‘ कहकर फूल चढ़ाए | इसके बाद निम्नलिखित मंत्र को पढ़कर शंख को प्रणाम करें |

त्वम् पुरा सागरोत्पन्नो विष्णुना विधृत: करे |

निर्मित: सर्वदेवैश्च पांचजन्य ! नमोस्तुते ||

शङ्ख गायत्री – ॐ ह्रीं पाञ्चजन्याय विद्महे पावमानाय् धीमहि | तन्नो शङ्ख: प्रचोदयात् ||

मंडप पूजा :

मंडप पूजा Sadhana मंत्र :

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके । शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

ॐ मण्डप देवताये नमः महालक्ष्मि स्वरुपाये नमः सकल पुजार्थे गन्धाक्षत पुष्पम् समर्पयामि ॥

मन्त्र बोलके गन्ध पुष्प और अक्षता ऊपर की ओर फेंकें ।

अब आप अपनी मुख्य साधना के लिए पूर्ण रूप से तैयार हैं। पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन, यन्त्र पूजन को मूल मंत्र के साथ साधना में पवित्र करें और मंत्र का जप करें और निर्दिष्ट रूप से हवन करें।

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