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रङ्गनाथ स्तोत्रम् || Ranganatha Stotram || Ranganatha Stotra

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श्री रङ्गनाथ स्तोत्रम् || Sri Ranganatha Stotram || Ranganatha Stotra

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श्री रङ्गनाथ स्तोत्रम् || Sri Ranganatha Stotram || Ranganatha Stotra

सप्तप्राकारमध्ये सरसिजमुकुलोद्भासमाने विमाने,

कावेरीमध्यदेशे फणिपतिशयने शेषपर्यंकभागे ।

निद्रामुद्राभिरामं कटिनिकटशिरःपार्श्वविन्यस्तहस्तम्,

पद्माधात्रीकराभ्यां परिचितचरणं रङ्गराजं भजेऽहम्  ॥ १ ॥

आनन्दरूपे  निजबोधरूपे ब्रह्मस्वरूपे श्रुतिमूर्तिरूपे ।

शशांकरूपे रमणीयरूपे श्रीरङ्गरूपे रमतां मनो मे ॥ २ ॥

कावेरितीरे करुणाविलोले मन्दारमूले धृतचारुचेले ।

दैत्यान्तकालेऽखिललोकलीले श्रीरङ्गलीले रमतां मनो मे ॥ ३ ॥ 

लक्ष्मीनिवासे जगतां निवासे हृत्पद्मवासे रविबिम्बवासे ।

कृपानिवासे गुणबृन्दवासे श्रीरङ्गवासे रमतां मनो मे ॥ ४ ॥

ब्रह्मादिवन्द्ये जगदेकवन्द्ये मुकुन्दवन्द्ये सुरनाथवन्द्ये ।

व्यासादिवन्द्ये सनकादिवन्द्ये श्रीरङ्गवन्द्ये रमतां मनो मे ॥ ५ ॥

ब्रह्माधिराजे गरुडाधिराजे वैकुण्ठराजे सुरराजराजे ।

त्रैलोक्यराजेऽखिललोकराजे श्रीरङ्गराजे रमतां मनो मे ॥ ६ ॥

अमोघमुद्रे परिपूर्णनिद्रे श्रीयोगनिद्रे ससमुद्रनिद्रे ।

श्रितैकभद्रे जगदेकनिद्रे श्रीरङ्गभद्रे रमतां मनो मे ॥ ७ ॥

स चित्रशायी भुजगेन्द्रशायी नन्दाङ्कशायी कमलाङ्कशायी ।

क्षीराब्धिशायी वटपत्रशायी श्रीरङ्गशायी रमतां मनो मे ॥ ८ ॥

इदं हि रङ्गं त्यजतामिहाङ्गम् पुनर्नचाङ्कं यदि चाङ्गमेति ।

पाणौ रथाङ्गं चरणेम्बु गाङ्गम् याने विहङ्गं शयने भुजङ्गम् ॥ ९ ॥

रङ्गनाथाष्टकं पुण्यम् प्रातरुत्थाय यः पठेत् ।

सर्वान् कामानवाप्नोति रङ्गिसायुज्यमाप्नुयात् ॥ १० ॥

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