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श्री प्रयाग अष्टकम || Shri Prayag Ashtakam || Prayag Ashtak

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श्री प्रयाग अष्टकम || Shri Prayag Ashtakam

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श्री प्रयाग अष्टकम || Shri Prayag Ashtakam

॥ प्रयागाष्टकम् ॥ श्रीगणेशाय नमः ।

मुनय ऊचुः

सुरमुनिदितिजेन्द्रैः सेव्यते योऽस्ततन्द्रैर्गुरुतरदुरितानां का कथा मानवानाम् ।

स भुवि सुकृतकर्तुर्वाञ्छितावाप्तिहेतुर्जयति विजितयागस्तीर्थराजः प्रयागः ॥ १॥

श्रुतिः प्रमाणं स्मृतयः प्रमाणं पुराणमप्यत्र परं प्रमा णम् ।

यत्रास्ति गङ्गा यमुना प्रमाणं स तीर्थराजो जयति प्रयागः ॥ २॥

न यत्र योगाचरणप्रतीक्षा न यत्र यज्ञेष्टिविशिष्टदीक्षा ।

न तारकज्ञानगुरोरपेक्षा स तीर्थराजो जयति प्रयागः ॥ ३॥

चिरं निवासं न समीक्षते यो ह्युदारचित्तः प्रददाति च क्रमात् ।

यः कल्पिताथांर्श्च ददाति पुंसः स तीर्थराजो जयति प्रयागः ॥ ४॥

यत्राप्लुतानां न यमो नियन्ता यत्रास्थितानां सुगतिप्रदाता ।

यत्राश्रितानाममृतप्रदाता स तीर्थराजो जयति प्रयागः ॥ ५॥

पुर्यः सप्त प्रसिद्धाःप्रतिवचनकरीस्तीर्थराजस्य नार्यो ,

नैकटयान्मुक्तिदाने प्रभवति सुगुणा काश्यते ब्रह्म यस्याम् ।

सेयं राज्ञी प्रधाना प्रियवचनकरी मुक्तिदानेन युक्ता,

येन ब्रह्माण्डमध्ये स जयति सुतरां तीर्थराजः प्रयागः ॥ ६॥

तीर्थावली यस्य तु कण्ठभागे दानावली वल्गति पादमूले ।

व्रतावली दक्षिणपादमूले स तीर्थराजो जयति प्रयागः ॥ ७॥

आज्ञापि यज्ञाः प्रभवोपि यज्ञाः सप्तर्षिसिद्धाः सुकृतानभिज्ञाः ।

विज्ञापयन्तः सततं हि काले स तीर्थराजो जयति प्रयागः ॥ ८॥

सितासिते यत्र तरङ्गचामरे नद्यौ विभाते मुनिभानुकन्यके ।

लीलातपत्रं वट एक साक्षात्स तीर्थराजो जयति प्रयागः ॥ ९॥

तीर्थराजप्रयागस्य माहात्म्यं कथयिष्यति ।

शृण्वतः सततं भक्त्या वाञ्छितं फलमाप्नुयात् ॥ १०॥

इति श्रीमत्स्यपुराणे प्रयागराजमाहात्म्याष्टकं समाप्तम् ॥

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