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श्री गोकुलेश अष्टकम || Shri Gokulesh Ashtakam || Shri Gokuleshashtakam
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श्री गोकुलेश अष्टकम || Shri Gokulesh Ashtakam || Shri Gokuleshashtakam
उद्धर्तुं धरणीतले निजबलेनैव स्वकीयाम्,
जनान् आविर्भूय तथा कृपापरवशः श्रीविठ्ठलेशालये ।
यः श्रीभागवतस्य तत्त्वविवृतेश्चक्रे प्रवाहं वचः,
पीयूषैरतिपोषणाय सततं श्रीगोकुलेशोऽवतु ॥ १॥
यः पुष्टिमार्गगतभावविभावनैकं दक्षः,
समक्षमपि सन्निधिसेवकानाम् ।
यो ज्ञानगूढहृदयः सदयः सदैव ,
सेवासुखं मम तनोतु स गोकुलेशः ॥ २॥
यः सेव्यः सततं सतां निजफलप्रेप्सावदाविर्तना- ,
माचार्योदितशुद्धपुष्टिसुपथे नित्यानुकम्पाधरः ।
यद्दृष्ट्यैव हृदन्धकारनिचयो यायात्क्षणात्क्षीणता- ,
मानन्दं मुहुरातनोतु मधुराकारः प्रभुर्वल्लनभः ॥ ३॥
यो मायामतवर्तिदुष्टवदनध्वंसं वचोभिर्निजैः,
कुर्वन् सेवकसर्वलोकहृदयानन्दं सदा पोषयन् ।
तद्भावं सुदृढं करोति कृपया दासैकहृद्यातया,
यातानां शरणं हृदा समनसा मोदं सदा यच्छतु ॥ ४॥
हसद्वदनपङ्कजस्फुरदमन्दभावार्द्रदृक्,
कपोलविलसद्रजोद्वयविमिश्रताम्बूलदः ।
समुन्नतसुनासिकः सरसचारुबिम्बाधरो,
हरत्वखिलसेविनां चिरवियोगतापं क्षणात् ॥ ५॥
मनोजमधुराकृतिर्निजमनोविदोदोद्गति,
कृते जनमनोहृतौ विरतिकारकः संसृतौ ।
स्वभावपरिपोषको भवसमुद्रसंशोषकः,
करोतु वरणं सदा सफलमत्र वै वल्लभः ॥ ६॥
गोधूममेचकमनोहरवर्णदेहो यः,
केशकृष्णनिचयोल्लसदुत्तमाङ्गः ।
सूक्ष्मोत्तरीयकटिवस्त्रविराजिताङ्गः,
सङ्गं तनोतु मुदमद्भुतगोकुलेशः ॥ ७॥
ताताज्ञैकपरायणाशयविदां वर्यः परानन्ददो ,
माला येन सुरक्षिता निजमहायत्नेन कण्ठे सताम् ।
धर्मो येन विवर्धितः पितृपदाचारैः सदा सर्वतः ,
स श्रीगोकुलनायकः करुणया भूयाद्वशे सेविनाम् ॥ ८॥
सर्वं साधनजातमत्र विफलं नूनं विदित्वा जना ,
नित्यं तं भजत प्रियं प्रभुमयं त्यक्त्वेतरस्याश्रयम् ।
तन्नामानि जपन्तु रूपमखिलं सञ्जिन्तयन्तु ,
स्वयं सौख्यं तत्पदभावतोऽभिलषितं सर्वं स्वतः प्राप्स्यते ॥ ९॥
इति श्रीहरिरायविरचितं श्रीगोकुलेशाष्टकं सम्पूर्णम् ।
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