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श्री राधिका अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Sri Radhika Ashtottara Shatanama Stotram || Sri Radhika Ashtottara Shatanamavali Stotram

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श्री राधिका अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Sri Radhika Ashtottara Shatanama Stotram || Sri Radhika Ashtottara Shatanamavali Stotram

श्री राधिका अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् श्री राधा रानी जी को समर्पित हैं ! श्री राधिका अष्टोत्तर शतनामावली श्री राधा रानी जी की पूजा अर्चना में किया जाता हैं ! श्री राधिका शतनामावली स्तोत्रम के बारे में बताने जा रहे हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Sri Radhika Ashtottara Shatanama Stotram By Online Specialist Astrologer Acharya Pandit Lalit Trivedi. 

श्री राधिका अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Sri Radhika Ashtottara Shatanama Stotram || Sri Radhika Ashtottara Shatanamavali Stotram

अवीक्षितेश्वरी काचिद्वृन्दावनमहेश्वरीम् ।

तत्पदाम्भोजमात्रैकगतिः दास्यतिकातरा ॥ १॥

पतिता तत्सरस्तीरे रुदत्यार्तरवाकुलम् ।

तच्छ्रीवक्त्रेक्षणप्राप्त्यै नामान्येतानि सञ्जगौ ॥ २॥

राधा गन्धर्विका गोष्ठयुवराजैककामिता ।

गन्धर्वाराधिता चन्द्रकान्तिर्माधवसङ्गिनी ॥ ३॥

दामोदराद्वैतसखी कार्तिकोत्कीर्तिदेश्वरी ।

मुकुन्ददयितावृन्दधम्मिल्लमणिमञ्जरी ॥ ४॥

भास्करोपासिका वार्षभानवी वृषभानुजा ।

अनङ्गमञ्जरीज्येष्ठा श्रीदामावरजोत्तमा ॥ ५॥

कीर्तिदाकन्यका मातृस्नेहपीयूषपुत्रिका ।

विशाखासवयाः प्रेष्ठविशाखाजीविताधिका ॥ ६॥

प्राणाद्वितीयाललिता वृन्दावनविहारिणी ।

ललिताप्राणरक्षैकलक्षा वृन्दावनेश्वरी ॥ ७॥

व्रजेन्द्रगृहिणी कृष्णप्रायस्नेहनिकेतनम् ।

व्रजगोगोपगोपालीजीवमात्रैकजीवनम् ॥ ८॥

स्नेहलाभीरराजेन्द्रा वत्सलाच्युतपूर्वजा ।

गोविन्दप्रणयाधारा सुरभीसेवनोत्सुका ॥ ९॥

धृतनन्दीश्वरक्षेमा गमनोत्कण्ठिमानसा ।

स्वदेहाद्वैततादृश्टाधनिष्ठाध्येयदर्शना ॥ १०॥

गोपेन्द्रमहिषीपाकशालावेदिप्रकाशिका ।

आयुर्वर्धाकरद्वानारोहिणीघ्रातमस्तका ॥ ११॥

सुबलान्यस्तसारूप्या सुबलाप्रीतितोषिता ।

मुखरादृक्सुधानप्त्री जटिलादृष्टिभासिता ॥ १२॥

मधुमङ्गलनर्मोक्तिजनितस्मितचन्दिरका ।

मुखरादृक्सुधानप्त्री जटिलादृष्टिभासिता ॥ १२॥

मधुमङ्गलनर्मोक्तिजनितस्मितचन्दिरका ।

पौर्णमासीबहिःखेलत्प्राणपञ्जरसारिका ॥ १३॥

स्वगुणाद्वैतजीवातुः स्वीयाहङ्कारवर्धिनी ।

स्वगणोपेन्द्रपादाब्जस्पर्शालम्भनहर्षिणी ॥ १४॥

स्वीयब्रुन्दावनोद्यानपालिकीकृतबृन्दका ।

ज्ञातवृन्दाटवीसर्वलतातरुमृगद्विजा ॥ १५॥

ईषच्चन्दनसङ्घृष्ट नवकाश्मीरदेहभाः ।

जपापुष्पप्रीतहरी पट्टचीनारुणाम्बरा ॥ १६॥

चरणाब्जतलज्योतिररुणीकृतभूतला ।

हरिचित्तचमत्कारि चारुनूपुरनिःस्वना ॥ १७॥

कृष्णश्रान्तिरश्रेणीपीठवल्गितघण्टिका ।

कृष्णसर्वस्वपीनोद्यत्कुचाञ्चन्मणिमालिका ॥ १८॥

नानारत्नेल्लसच्छङ्खचूडचारुभुजद्वया ।

स्यमन्तकमणिभ्राजन्मणिबन्धातिबन्धुरा ॥ १९॥

सुवर्णदर्पणज्योतिरुल्लङ्घिमुखमण्डला ।

पक्वदाडिमबीजाभ दन्ताकृष्टाघभिच्छुका ॥ २०॥

अब्जरागादिसृष्टाब्जकलिकाकर्णभूषणा ।

सौभाग्यकज्जलाङ्काक्त नेत्रानन्दितखञ्जना ॥ २१॥

सुवृत्तमौकित्कामुक्तानासिकातिलपुष्पिका ।

सुचारुनवकस्तूरीतिलकाञ्चितफालका ॥ २२॥

दिव्यवेणीविनिर्धूतकेकीपिञ्चवरस्तुतिः ।

नेत्रान्तसारविध्वंसकृतचाणूरजिद्धृतिः ॥ २३॥

स्फुरत्कैशोरतारुण्यसन्धिबन्धुरविग्रहा ।

माधवोल्लासकोन्मत्त पिकोरुमधुरस्वरा ॥ २४॥

प्राणायुतशतप्रेष्ठमाधवोत्कीर्तिलम्पटा ।

कृष्णापाङ्गतरङ्गोद्यत्सिमतपीयूषबुद्धुदा ॥ २५॥

पुञ्जीभूतजग्गलज्जावैदग्धीदिग्धविग्रहा ।

करुणाविद्रवद्देहा मूर्तिमन्माधुरीघटा ॥ २६॥

जगद्गुणवतीवर्गगीयमानगुणोच्चया ।

शच्यादिसुभगाबृन्दवन्द्यमानोरुसौभगा ॥ २७॥

वीणावादनसङ्गीत रसलास्यविशारदा ।

नारदप्रमुखोद्गीतजगदानन्दिसद्यशाः ॥ २८॥

गोवर्धनगुहागेहगृहिणीकुञ्जमण्डना ।

चण्डांशुनन्दिनीबद्धभगिनीभावविभ्रमा ॥ २९॥

दिव्यकुन्दलतानर्मसख्य दामविभूषणा ।

गोवर्धनधराह्णादि शृङ्गाररसपण्डिता ॥ ३०॥

गिरीन्द्रधरवक्षः श्रीः शङ्खचूडारिजीवनम् ।

गोकुलेन्द्रसुतप्रेमकामभूपेन्द्रपट्टणम् ॥ ३१॥

वृषविध्वंसनर्मोक्ति स्वनिर्मितसरोवरा ।

निजकुण्डजलक्रीडाजितसङ्कर्षणानुजा ॥ ३२॥

मुरमर्दनमत्तेभविहारामृतदीर्घिका ।

गिरीन्द्रधरपारिण्द्ररतियुद्धरुसिंहिका ॥ ३३॥

स्वतनूसौरभोन्मत्तीकृतमोहनमाधवा ।

दोर्मूलोच्चलनक्रीडाव्याकुलीकृतकेशवा ॥ ३४॥

निजकुण्डततीकुञ्ज क्लृप्तकेलीकलोद्यमा ।

दिव्यमल्लीकुलोल्लासि शय्याकल्पितविग्रहा ॥ ३५॥

कृष्णवामभुजन्यस्त चारुदक्षिणगण्डका ।

सव्यबाहुलताबद्धकृष्णदक्षिणसद्भुजा ॥ ३६॥

कृष्णदक्षिणचारूरुश्लिष्टवामोरुरम्भिका ।

गिरीन्द्रधरदृग्वक्षेमर्दिसुस्तनपर्वता ॥ ३७॥

गोविन्दाधरपीयूषवासिताधरपल्लवा ।

सुधासञ्चयचारूक्ति शीतलीकृतमाधवा ॥ ३८॥

गोविन्दोद्गीर्णताम्बूल रागरज्यत्कपोलिका ।

कृष्णसम्भोग सफलीकृतमन्मथसम्भवा ॥ ३९॥

गोविन्दमार्जितोद्दामरतिप्रस्विन्नसन्मुखा ।

विशाखाविजितक्रीडाशान्तिनिद्रालुविग्रहा ॥ ४०॥

गोविन्दचरणन्यस्तकायमानसजीवना ।

स्वप्राणार्बुदनिर्मच्छय हरिपादरजः कणा ॥ ४१॥

अणुमात्राच्युतादर्शशय्यमानात्मलिचना ।

नित्यनूतनगोविन्दवक्त्रशुभ्रांशुदर्शना ॥ ४२॥

निःसीमहरिमाधुर्यसौन्दर्याद्येकभोगिनी ।

सापत्न्यधाममुरलीमात्रभाग्यकटाक्षिणी ॥ ४३॥

गाढबुद्ध्बलक्रीडाजितवंशीविकर्षिणी ।

नर्मोक्तिचन्दिरकोत्फुल्ल कृष्णकामाब्धिवर्धिनी ॥ ४४॥

व्रजचन्द्रेज्दिरयग्राम विश्रामविधुशालिका ।

कृष्णसर्वेन्दिरयोन्मादि राधेत्यक्षरयुग्मका ॥ ४५॥

इदं श्रीराधिकानाम्नामष्टोत्तरशतोज्ज्वलम् ।

श्रीराधलम्भकं नाम स्तोत्रं चारु रसायनम् ॥ ४६॥

योऽधीते परमप्रीत्या दीनः कातरमानसः ।

स नाथामचिरेणैव सनाथामीक्षते ध्रुवम् ॥ ४७॥

इति श्रीराधिकाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

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