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रामकृष्ण अवतार स्तोत्र || Ramakrishna Avatara Stotram || Ramakrishna Avatara Stotra

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श्री रामकृष्ण अवतार स्तोत्र || Sri Ramakrishna Avatara Stotram

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श्री रामकृष्ण अवतार स्तोत्र || Sri Ramakrishna Avatara Stotram

हृदयकमलमध्ये राजितं निर्विकल्पं,

सदसदखिलभेदातीतमेकस्वरूपम्।

प्रकृतिविकृतिशून्यं नित्यमानन्दमूर्तिं,

विमलपरमहंसं रामकृष्णं भजामः ॥१॥

निरुपममतिसूक्ष्मं निष्प्रपञ्चं निरीहं,

गगनसदृशमीशं सर्वभूताधिवासम्।

त्रिगुणरहितसच्चिद्ब्रह्मरूपं वरेण्यं,

विमलपरमहंसं रामकृष्णं भजामः ॥२॥

प्रलयजलधिमग्नं वेदराशिं दिधीर्षु,

र्दनुजमतिविशालं हंसि शङ्खं विचित्रम्।

तमपरिमितवीर्यं मीनरूपं दधानं,

विमलपरमहंसं रामकृष्णं भजामः ॥३॥

अतुलविपुलदेहे चिन्मये कूर्मरूपे,

वहसि सकलमेतद्विश्वमाधारशक्त्या।

तव खलु महिमानं कोऽल्पधीर्वर्णयेत्त्वां,

विमलपरमहंसं रामकृष्णं भजामः ॥४॥

दशनविधृतपृथ्वीं सूकरं श्वेतकायं,

दलितदितिजराजं दंष्ट्रिणं चक्रपाणिं।

अमितविभवशक्तिं पालकं देवतानां,

विमलपरमहंसं रामकृष्णं भजामः ॥५॥

विकटदशनवक्त्रं लोलजिह्वं प्रचण्डं,

गिरिवरसमकायं रक्तहस्तं नृसिंहम्।

प्रशमितसुरखेदं कोटिसूर्यप्रकाशं,

विमलपरमहंसं रामकृष्णं भजामः ॥६॥

छलयितुमवतीर्णो वामनस्त्वं बलिं वै,

त्रिचरणकमलेन क्रामसि स्वर्भुवो भूः।

परमपुरुषमादिं काश्यपं विश्वरूपं,

विमलपरमहंसं रामकृष्णं भजामः ॥७॥

निशितपरशुधारं  क्षत्रसंतानकेतुं,

नवजलधरवर्णं भार्गवं भीमवीर्यम्।

शमनसदृशघोरं जामदग्न्यं विशालं,

विमलपरमहंसं रामकृष्णं भजामः ॥८॥

रघुकुलवरमीशं जानकीप्राणनाथं,

समरकुशलवीरं राघवं रावणारिम्।

हनुमदनुजसेव्यं धार्मिकं सत्यपालं,

विमलपरमहंसं रामकृष्णं भजामः ॥९॥

हलधरमतिशुभ्रं नीलवस्त्रं सुरेन्द्रं,

दनुजदलनकार्ये पारगं मत्तसिंहम्।

यममिव यमुनाया भीतिदं रौहिणेयं,

विमलपरमहंसं रामकृष्णं भजामः ॥१०॥

व्रजविपिनविहारे श्यामलं वासुदेवं,

सुमधुररसकेलिं गोपिकाप्राणनाथम्।

मदनरमणवेषं कंसकालं कवीशं,

विमलपरमहंसं रामकृष्णं भजामः ॥११॥

पशुवधमतिघोरं चोदितं वेदशास्त्रैः,

शमयितुमवतीर्णं ज्ञानदं शाक्यसिंहम् ।

प्रकटितनवमार्गद्वैतनिर्वाणकल्पम्,

विमलपरमहंसं रामकृष्णं भजामः ॥१२॥

मधुरसरलवाक्यैरीशतत्त्वं प्रकाश्य,

क्रुशगतपरिशेषोऽपीशपुत्रोऽमृतो यः।

तमतिशयपवित्रं मेरिजं लोकबन्धुं,

विमलपरमहंसं रामकृष्णं भजामः ॥१३॥

यवनभजनरीतिं नीतिमिस्लामशास्त्रं,

उपदिशति विनेयान् तत्त्वमल्लाभिधस्य।

परमपुरुषनुन्नो यो महम्मद्वपुस्तं,

विमलपरमहंसं रामकृष्णं भजामः ॥१४॥

श्रुतिनिगदितमार्गस्थापनायावतारं,

जिननयबहुवादभ्रान्तिमुन्मूलयन्तम्।

भुवनविजयकीर्तिं शङ्करं भाष्यकारं,

विमलपरमहंसं रामकृष्णं भजामः ॥१५॥

कलिमलहरनाम्नः कीर्तनं घोषयन्तं,

करधृतजलपात्रं दण्डिनं हेमवर्णम्।

भवजलनिधिपोतं कृष्णचैतन्यरूपं,

विमलपरमहंसं रामकृष्णं भजामः ॥१६॥

वितरितुमवतीर्णं ज्ञानभक्तिप्रशान्तीः,

प्रणयगलितचित्तं जीवदुःखासहिष्णुम्।

धृतसहजसमाधिं चिन्मयं कोमलाङ्गं,

विमलपरमहंसं रामकृष्णं भजामः ॥१७॥

हरिहरविधिदेवा मूर्तिभेदास्तवैते,

निरुपमबहुमूर्तिर्मायया कल्पयन्तम्।

अमितगुणचरित्रं दीनबन्धुं दयालुं,

विमलपरमहंसं रामकृष्णं भजामः ॥१८॥

जय जय करुणाब्धे मोक्षसेतो स्मरारे,

जय जय जगदीश ज्ञानसिन्धो स्वयंभो।

जय जय परमात्मंस्त्राहि मां भक्तिहीनं,

जय जय भवहारिन् रामकृष्ण द्विबाहो ॥१९॥

मूकोऽहं नाभिजानामि तव स्तुतिं जगद्गुरो।

तथापि त्वत्कृपालेशाद्वाचालोऽस्मि पुनः पुनः ॥२०॥

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