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श्री मुकुन्दमाला स्तोत्रम || Sri Mukunda Mala Stotram || Mukunda Mala Stotra

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श्री मुकुन्दमाला स्तोत्रम || Sri Mukunda Mala Stotram

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श्री मुकुन्दमाला स्तोत्रम || Sri Mukunda Mala Stotram

वन्दे मुकुन्दमरविन्ददलायताक्षम् कुन्देन्दुशङ्खदशनं शिशुगोपवेषम् ।

इन्द्रादिदेवगणवन्दितपादपीठम् वृन्दावनालयमहं वसुदेवसूनुम् ॥ १ ॥

श्रीवल्लभेति वरदेति दयापरेति भक्तप्रियेति भवलुण्ठनकोविदेति ।

नाथेति नागशयनेति जगन्निवासे-त्यालापनं प्रतिपदं कुरु मे मुकुन्द ॥ २ ॥

जयतु जयतु देवो देवकीनन्दनोऽयम् जयतु जयतु कृष्णो वृष्णिवंशप्रदीपः ।

जयतु जयतु मेघश्यामलः कोमलाङ्गः जयतु जयतु पृथ्वीभारनाशो मुकुन्दः ॥ ३ ॥

मुकुन्द मूर्ध्ना प्रणिपत्य याचे भवन्तमेकान्तमियन्तमर्थम् ।

अविस्मृतिः त्वच्चरणारविन्दे भवे भवे मेऽस्तु भवत्प्रसादात् ॥ ४ ॥

श्रीगोविन्दपदांभोजमधुनो महदद्भुतम् ।

तत्पायिनो न मुञ्चन्ति मुञ्चन्ति पदपायिनः ॥ ५ ॥

नाहं वन्दे तव चरणयोर्द्वद्वमद्वन्द्वहेतोः कुंभीपाकं गुरुमपि हरे नारकं नापनेतुम् ।

रम्या रामा मृदुतनुलतानन्दनेनापि रन्तुम् भावे भावे हृदयभवने भावयेयं भवन्तम् ॥ ६ ॥

नास्था धर्मे न च वसुनिचये नैव कामोपभोगे यद्यद्भव्यं भवतु भगवन् पूर्वकर्मानुरूपम् ।

एतत्प्रार्थ्यं मम बहुमतं जन्मजन्मान्तरेऽपि त्वत्पादांभोरुहयुगगता निश्चला भक्तिरस्तु ॥ ७ ॥

दिवि वा भुवि वा ममास्तु वसो नरके वा नरकान्तक प्रकामम् ।

अवधीरित शारदारविन्दौ चरणौ ते मरणेऽपि चिन्तयामि ॥ ८ ॥

कृष्ण त्वदीय पदपङ्कजपञ्जरान्त-रद्यैव मे विशतु मानसराजहंसः ।

प्राणप्रयाणसमये कफवातपित्तैः कण्ठावरोधनविधौ स्मरणं कुतस्ते ॥ ९ ॥

सरसिजनयने सशङ्खचक्रे मुरभिदि मा विरमेह चित्त रन्तुं ।

सुखकरमपरं न जातु जाने हरिचरणस्मरणामृतेन तुल्यम् ॥ १० ॥

मा भैर्मन्दमनो विचिन्त्य बहुधा यामीश्चिरं यातनाः तेऽमी न प्रभवन्ति पापरिपवः स्वामी ननु श्रीधरः ।

आलस्यं व्यपनीय भक्तिसुलभं ध्यायस्व नारायणम् लोकस्य व्यसनापनोदनकरो दासस्य किं न क्षमः ॥ ११ ॥

भवजलधिगतानां द्वन्द्ववाताहतानाम् सुतदुहितृकलत्रत्राण भारार्दितानाम् ।

विषमविषयतोये मज्जतामप्लवानाम् भवति शरणमेको विष्णुपोतो नाराणाम् ॥ १२ ॥

भवजलधिमगाधं दुस्तरं निस्तरेयम् कथमहमिति चेतो मा स्म गाः कातरत्वम् ।

सरसिज दृशि देवे तावकी भक्तिरेका नरकभिदि निषण्णा तारयिष्यत्यवश्यम् ॥ १३ ॥

तृष्णातोये मदनपवनोद्धूतमोहोर्मिजाले दारावर्ते तनयसहजग्राहसङ्घाकुले च ।

संसाराख्ये महति जलधौ मज्जतां नस्त्रिधामन् पादांभोजे वरद भवतो भक्तिनावं प्रयच्छ ॥ १४ ॥

जिह्वे कीर्तय केशवं मुररिपुं चेतो भज श्रीधरम् पाणिद्वन्द्व समर्चयाऽच्युतकथाः श्रोत्रद्वय त्वं शृणु ।

कृष्णं लोकय लोचनद्वय हरेर्गच्छाङ्घ्रियुग्मालयं जिघ्र घ्राण मुकुन्दपादतुलसीं मूर्धन्नमाधोक्षजम् ॥ १५ ॥

हे मर्त्याः परमं हितं शृणुत वो वक्ष्यामि संक्षेपतः संसारार्णवमापदूर्मिबहुलं सम्यक् प्रविश्य स्थिताः ।

नानाज्ञानमपास्य चेतसि नमो नारायणायेत्यमुम् मन्त्रं सप्रणवं प्रणामसहितं प्रावर्तयध्वं मुहुः ॥ १६ ॥

बद्धेनाञ्जलिना नतेनशिरसा गात्रैः सरोमोद्गमैः कण्ठेन स्वरगद्गदेन नयनेनोद्गीर्णबाष्पाम्बुना ।

नित्यं त्वच्चरणारविन्दयुगलध्यानामृतास्वादिनाम् अस्माकं सरसीरुहाक्ष सततं संपद्यतां जीवितम् ॥ १७ ॥

भक्तापायभुजङ्गगारुडमणिः त्रिलोक्यरक्षामणिः गोपीलोचनचातकाम्बुदमणिः सौदर्यमुद्रामणिः ।

यः कान्तामणिरुक्मिणीघनकुचद्वन्द्वैकभूषामणिः श्रेयो दैवशिखामणिर्दिशतु नो गोपालचूडामणिः ॥ १८ ॥

शत्रुच्छेदैकमन्त्रं सकल्मुपनिषद्वाक्यसंपूज्यमन्त्रम् संसारोत्तारमन्त्रं समुपचिततमस्सङ्घनिर्याणमन्त्रम् ।

सर्वैश्वर्यैकमन्त्रं व्यसनभुजगसंदष्टसंत्राणमन्त्रम् जिह्वे श्रीकृष्णमन्त्रं जप जप सततं जन्मसाफल्यमन्त्रम् ॥ १९ ॥

व्यामोहप्रशमौषधं मुनिमनोवृतिप्रवृत्यौषधम् दैत्येन्द्रार्तिहरौषधं त्रिजगतां सञ्जीवनैकौषधम् ।

भक्तात्यन्तहितौषधं भवभयप्रध्वंसनैकौषधं श्रेयः प्राप्तिकरौषधं पिब मनः श्रीकृष्णदिव्यौषधम् ॥ २० ॥

मज्जन्मनः फलमिदं मधुकैटभारे मत्प्रार्थनीय मदनुग्रह एष एव ।

त्वद्भृत्यभृत्य परिचारकभृत्यभृत्य-भृत्यस्य भृत्य इति मां स्मर लोकनाथ ॥ २१ ॥

इदं शरीरं परिणामपेशलम् पतत्यवश्यं श्लथसन्धिजर्जरम् ।

किमौषधैः क्लिश्यति मूढ दुर्मते निरामयं कृष्णरसायनं पिब ॥ २२ ॥

नमामि नारायण पादपङ्कजम् करोमि नारायणपूजनं सदा ।

वदामि नारायण्नाम निर्मलम् स्मरामि नारायणतत्वमव्ययम् ॥ २३ ॥ 

श्रीनाथ नारायण वासुदेव श्रीकृष्ण भक्तप्रिय चक्रपाणे ।

श्रीराम पद्माक्ष हरे मुरारे श्रीरङ्गनाथाय नमो नमस्ते ॥ २४ ॥

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