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श्री दक्षिणामूर्ति स्तोत्रम् || Shri Dakshinamurthy Stotram || Dakshinamurthy Stotra

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श्री दक्षिणामूर्ति स्तोत्रम् || Shri Dakshinamurthy Stotram

श्री दक्षिणामूर्ति स्तोत्रम् के रचियता श्री आदी शंकराचार्य जी हैं ! भगवान शिव जी को श्री दक्षिणामूर्ति से संबोधित किया गया हैं ! श्री दक्षिणामूर्ति स्तोत्रम् एक शिक्षक के रूप में गाया जाता हैं ! श्री दक्षिणामूर्ति स्तोत्रम् आदि के बारे में बताने जा रहे हैं !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें : 9667189678 Shri Dakshinamurthy Stotram By Online Specialist Astrologer Sri Hanuman Bhakt Acharya Pandit Lalit Trivedi.

श्री दक्षिणामूर्ति स्तोत्रम् || Shri Dakshinamurthy Stotram

ध्यानम्

मौनव्याख्या प्रकटित परब्रह्मतत्त्वं युवानं

वर्षिष्ठांते वसद् ऋषिगणौः आवृतं ब्रह्मनिष्ठैः ।

आचार्येन्द्रं करकलित चिन्मुद्रमानंदमूर्तिं

स्वात्मारामं मुदितवदनं दक्षिणामूर्तिमीडे ॥

विश्वं दर्पणदृश्यमाननगरीतुल्यं निजान्तर्गतं

पश्यन्नात्मनि मायया बहिरिवोद्भूतं यथा निद्रया ।

यः साक्षात्कुरुते प्रबोधसमये स्वात्मानमेवाद्वयं

तस्मै श्रीगुरुमूर्तये नम इदं श्रीदक्षिणामूर्तये ॥१॥

बीजस्याऽन्तरिवाङ्कुरो जगदिदं प्राङ्गनिर्विकल्पं पुनः

मायाकल्पितदेशकालकलना वैचित्र्यचित्रीकृतम् ।

मायावीव विजृम्भयत्यपि महायोगीव यः स्वेच्छया

तस्मै श्रीगुरुमूर्तये नम इदं श्रीदक्षिणामूर्तये ॥२॥

यस्यैव स्फुरणं सदात्मकमसत्कल्पार्थकं भासते

साक्षात्तत्त्वमसीति वेदवचसा यो बोधयत्याश्रितान् ।

यत्साक्षात्करणाद्भवेन्न पुनरावृत्तिर्भवाम्भोनिधौ

तस्मै श्रीगुरुमूर्तये नम इदं श्रीदक्षिणामूर्तये ॥३॥

नानाच्छिद्रघटोदरस्थितमहादीपप्रभा भास्वरं

ज्ञानं यस्य तु चक्षुरादिकरणद्वारा वहिः स्पन्दते ।

जानामीति तमेव भान्तमनुभात्येतत्समस्तं जगत्

तस्मै श्रीगुरुमूर्तये नम इदं श्रीदक्षिणामूर्तये ॥४॥

देहं प्राणमपीन्द्रियाण्यपि चलां बुद्धिं च शून्यं विदुः

स्त्रीबालान्धजडोपमास्त्वहमिति भ्रान्ता भृशं वादिनः ।

मायाशक्तिविलासकल्पितमहाव्यामोहसंहारिणो

तस्मै श्रीगुरुमूर्तये नम इदं श्रीदक्षिणामूर्तये ॥५॥

राहुग्रस्तदिवाकरेन्दुसदृशो मायासमाच्छादनात्

सन्मात्रः करणोपसंहरणतो योऽभूत्सुषुप्तः पुमान् ।

प्रागस्वाप्समिति प्रबोधसमये यः प्रत्यभिज्ञायते

तस्मै श्रीगुरुमूर्तये नम इदं श्रीदक्षिणामूर्तये ॥६॥

बाल्यादिष्वपि जाग्रदादिषु तथा सर्वास्ववस्थास्वपि

व्यावृत्तास्वनुवर्तमानमहमित्यन्तः स्फुरन्तं सदा ।

स्वात्मानं प्रकटीकरोति भजतां यो मुद्रयाभद्रया

तस्मै श्रीगुरुमूर्तये नम इदं श्रीदक्षिणामूर्तये ॥७॥

विश्वं पश्यति कार्यकारणतया स्वस्वामिसम्बन्धतः

शिष्याचार्यतया तथैव पितृपुत्राद्यात्मना भेदतः ।

स्वप्ने जाग्रति वा य एष पुरुषो मायापरिभ्रामितः

तस्मै श्रीगुरुमूर्तये नम इदं श्रीदक्षिणामूर्तये ॥८॥

भूरम्भांस्यनलोऽनिलोऽम्बरमहर्नाथो हिमांशु पुमान्

इत्याभाति चराचरात्मकमिदं यस्यैव मूर्त्यष्टकम्

नान्यत् किञ्चन विद्यते विमृशतां यस्मात्परस्माद्विभोः

तस्मै श्रीगुरुमूर्तये नम इदं श्रीदक्षिणामूर्तये ॥९॥

सर्वात्मत्वमिति स्फुटीकृतमिदं यस्मादमुष्मिन् स्तवे

तेनास्य श्रवणात्तदर्थमननाद्ध्यानाच्च संकीर्तनात् ।

सर्वात्मत्वमहाविभूतिसहितं स्यादीश्वरत्वं स्वतः

सिद्ध्येत्तत्पुनरष्टधा परिणतं चैश्वर्यमव्याहतम् ॥१०॥

॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं दक्षिणामुर्तिस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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