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छिन्नमस्ता अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Chinnamasta Ashtottara Shatanama Stotram

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छिन्नमस्ता अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Chinnamasta Ashtottara Shatanama Stotram

यह तो आप सब जानते है की छिन्नमस्ता महाविद्या दस महाविद्याओं में पांचवें स्थान की साधना मानी जाती हैं ! छिन्नमस्ता अष्टोत्तर शतनाम स्‍तोत्र पढ़ने से साधक जीवन में सभी दृष्टियों से सुखी रहता है । साधक का शरीर स्वस्थ, सुन्दर और आकर्षक बन जाता है ! साधक को जीवन में धन, धान्य, पृथ्वी, विलासमय भवन, कीर्ति, दीर्घायु ख्याति, यश, वाहन, पुत्र, पौत्र और अन्य सभी भौतिक सुख स्वत: ही प्राप्त होते रहते हैं तथा जीवन में किसी प्रकार का अभाव देखने को नहीं मिलता !! जय श्री सीताराम !! जय श्री हनुमान !! जय श्री दुर्गा माँ !! जय श्री मेरे पूज्यनीय माता – पिता जी !! यदि आप अपनी कुंडली दिखा कर परामर्श लेना चाहते हो तो या किसी समस्या से निजात पाना चाहते हो तो कॉल करके या नीचे दिए लाइव चैट ( Live Chat ) से चैट करे साथ ही साथ यदि आप जन्मकुंडली, वर्षफल, या लाल किताब कुंडली भी बनवाने हेतु भी सम्पर्क करें Mobile & Whats app Number : 9667189678 Chinnamasta Ashtottara Shatanama Stotram By Online Specialist Astrologer Sri Hanuman Bhakt Acharya Pandit Lalit Trivedi. 

छिन्नमस्ता अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् || Chinnamasta Ashtottara Shatanama Stotram

पार्वत्युवाच

नाम्नां सहस्रमं परमं छिन्नमस्ता-प्रियं शुभम्।

कथितं भवता शम्भो सद्यः शत्रु-निकृन्तनम्।।1।।

पुनः पृच्छाम्यहं देव कृपां कुरु ममोपरि।

सहस्र-नाम-पाठे च अशक्तो यः पुमान् भवेत्।।2।।

तेन किं पठ्यते नाथ तन्मे ब्रूहि कृपामय।

श्री सदाशिव उवाच

अष्टोत्तर-शतं नाम्नां पठ्यते तेन सर्वदा।

सहस्र्-नाम-पाठस्य फलं प्राप्नोति निश्चितम् .

ॐ अस्य श्रीछिन्नमस्ताष्टोत्तर-शत-नाअम-स्तोत्रस्य सदाशिव

ऋषिरनुष्टुप् छन्दः श्रीछिन्नमस्ता देवता

मम-सकल-सिद्धि-प्राप्तये जपे विनियोगः।

ॐ छिन्नमस्ता महाविद्या महाभीमा महोदरी .

चण्डेश्वरी चण्ड-माता चण्ड-मुण्ड्-प्रभञ्जिनी।।4।।

महाचण्डा चण्ड-रूपा चण्डिका चण्ड-खण्डिनी।

क्रोधिनी क्रोध-जननी क्रोध-रूपा कुहू कला ।।5।।

कोपातुरा कोपयुता जोप-संहार-कारिणी ।

वज्र-वैरोचनी वज्रा वज्र-कल्पा च डाकिनी।।6।।

डाकिनी कर्म्म-निरता डाकिनी कर्म-पूजिता।

डाकिनी सङ्ग-निरता डाकिनी प्रेम-पूरिता।।7।।

खट्वाङ्ग-धारिणी खर्वा खड्ग-खप्पर-धारिणी ।

प्रेतासना प्रेत-युता प्रेत-सङ्ग-विहारिणी ।।8।।

छिन्न-मुण्ड-धरा छिन्न-चण्ड-विद्या च चित्रिणी ।

घोर-रूपा घोर-दृष्टर्घोर-रावा घनोवरी ।।9।।

योगिनी योग-निरता जप-यज्ञ-परायणा।

योनि-चक्र-मयी योनिर्योनि-चक्र-प्रवर्तिनी ।।10।।

योनि-मुद्रा-योनि-गम्या योनि-यन्त्र-निवासिनी ।

यन्त्र-रूपा यन्त्र-मयी यन्त्रेशी यन्त्र-पूजिता ।।11।।

कीर्त्या कपर्दिनी: काली कङ्काली कल-कारिणी।

आरक्ता रक्त-नयना रक्त-पान-परायणा ।।12।।

भवानी भूतिदा भूतिर्भूति-दात्री च भैरवी ।

भैरवाचार-निरता भूत-भैरव-सेविता।।13।।

भीमा भीमेश्वरी देवी भीम-नाद-परायणा ।

भवाराध्या भव-नुता भव-सागर-तारिणी ।।14।।

भद्रकाली भद्र तनुर्भद्र-रूपा च भद्रिका।

भद्ररूपा महाभद्रा सुभद्रा भद्रपालिनी।।15।।

सुभव्या भव्य-वदना सुमुखी सिद्ध-सेविता ।

सिद्धिदा सिद्धि-निवहा सिद्धासिद्ध-निषेविता।।16।।

शुभदा शुभगा शुद्धा शुद्ध-सत्वा-शुभावहा ।

श्रेष्ठा दृष्टिमयी देवी दृष्ठि-संहार-कारिणी।।17।।

शर्वाणी सर्वगा सर्वा सर्व-मङ्गल-कारिणी ।

शिवा शान्ता शान्ति-रूपा मृडानी मदनातुरा ।।18।।

इति ते कथितं देवि स्तोत्रं परम-दुर्लभम्।

गुह्याद्-गुह्यतरं गोप्यं गोपनीयं प्रयत्नतः ।।19।।

किमत्र बहुनोक्तेन त्वदग्रं प्राण-वल्लभे।

मारणं मोहनं देवि ह्युच्चाटनमतः परमं .।।20।।

स्तम्भनादिक-कर्म्माणि ऋद्धयः सिद्धयोऽपि च।

त्रिकाल-पठनादस्य सर्वे सिध्यन्त्यसंशयः ।।21।।

महोत्तमं स्तोत्रमिदं वरानने मयेरितं नित्य मनन्य-बुद्धयः।

पठन्ति ये भक्ति-युता नरोत्तमा भवेन्न तेषां रिपुभिः पराजयः ।।22।।

!! इति श्रीछिन्नमस्तका अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम् !!

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